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लगभग एक पखवाड़े तक चलने वाला बनियापुर पशु मेला संसाधनों के अभाव में महज पांच दिन में ही सिमट कर रहा गया

लगभग एक पखवाड़े तक चलने वाला बनियापुर पशु मेला संसाधनों के अभाव में महज पांच दिन में ही सिमट कर रहा गया

मेले में पीने के पानी से लेकर ठंड से बचाव के लिये शेड एवं पशु चारा तक का अभाव।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा मेले की ख्याति को बरकरार रखने के लिये नही उठाया जा रहा कारगर कदम।

रिपोर्ट: संजय कुमार सिंह, अंबालिका न्यूज़ ब्यूरो

बनियापुर (सारण)। सोनपुर मेला शुरू होने के एक सप्ताह बाद लगने वाला बनियापुर का पशु मेला आम तौर पर एक पखवारे तक चलता है। मगर मेले में संसाधनों का घोर अभाव है। जिसका मेले पर प्रतिकूल असर पड़ा है। गत शुक्रवार से प्रारम्भ होकर गुरुवार तक महज पाँच से छः दिनो में ही पशु मेला समाप्त हो गया। स्थानीय लोगो की माने तो मेला स्थल पर भुस्वामी द्वारा पशुओ की विक्री पर कौड़ी के रूप में राशि की वसुली तो कि जाती है। मगर किसी तरह की सुविधा एवं संसाधन उपलब्ध नही करायी जाती है। जिससे पशुपालक एवं पशु की खरीद विक्री करने आने वाले व्यवसायियो को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।हालाँकि पशु मेला की समाप्ति के बाद आम लोगो के लिये अगले तीन महीने तक मेले का आयोजन रहता है। जिसमे ऊनी वस्त्र,पौधों की नर्सरी,लकड़ी के बने फर्नीचर, गुड़ से बनी जलेबी आदि की विक्री जोरो पर रहती है।

खुले आसमान के निचे रहने को विवश होना पड़ता है पशुपालको को:

दशको से लगने वाले इस मेला मे भुस्वामीओ द्वारा मवेशी की विक्री पर प्रति मवेशी दो सै रूपये की वसूली की जाती है मगर किसी तरह की सुविधा उपलब्घ नही करायी जाती। पूर्व मे मेले मे विशाल पेड़ थे जिससे ठंढ़ का कम प्रभाव पड़ता था.धीरे-धीरे पेड़ो की कटाई से मेले मे आने वाले पशुपालक एवं व्यवसाई खुले आसमान मे रहने को विवश होने लगे है। पशुपालको और मवेशियों के विश्राम के लिये कही भी शेड आदि की व्यवस्था नही की गई है।

चारे एवं पीने के पानी का नही है, व्यवस्था:

इतने बड़े मेला मे न तो मेला समिति द्वारा न ही सरकारी स्तर पर पशुचारे एवं पेय जल की व्यवस्था की जाती है। पशुपालक एवं व्यवसायी अपना भोजन-पानी तो यत्र तत्र से व्यवस्था कर लेते है मगर मेले मे आये पशुओ को गढ़े मे जमा दुषित जल पीने को विवश होना पड़ता है। पशु चारे की व्यवस्था के लिए पशुपालक को आस पड़ोस के गांवो पर निर्भर रहना पड़ता है जिसमे अपेक्षाकृत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है जिससे आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ती है। सार्वजनिक स्थल पर चापाकल नहीं होने से आम लोगो को भी परेशानी होती है।

सुरक्षा के नही है माकुल इंतजाम:

मेले मे उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती जिला सहित बिहार के सीवान,गोपालगंज,पूर्वी चम्पारण सहित कई जिले के पशुपालक एवं व्यवसाई आते है मगर उनके सुरक्षा के लिये कोई भी पुख्ता इंतजाम न तो स्थानीय प्रशासन द्वारा की जाती है न ही मेला समिति द्वारा। पूर्व में कई बार पशुपालको एवं व्यवसायियों से रुपये की छिनतई की घटना भी हो चुकी है।

कृषको को रहता है वेसब्री से मेले का इंतजार:

स्थानीय कृषक सहित मेले मे आने वाले कृषको को मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है।.कृषक अपने सुविधा के अनुसार पूर्व के मवेशी की विक्री कर आवश्यकतानुसार अगले साल के खेती के लिए मवेशी की खरीदारी करते है।

स्थानीय जनप्रतिनिधी भी निष्क्रिय:

मेला के आसपास सहित मुख्य बाजार बनियापुर के लोगों ने बताया कि स्थानीय मुखिया से लेकर विधायक, सांसद तक मेले की ख्याति बरकरार रखने में रुचि नही दिखा रहे है। संसाधनों के अभाव में बिगत कुछ वर्षो से बैलहट्टा मेला समय से पूर्व ही आधे- अधूरे पशुओ के पहुँचने पर लग जाता है और समय से पूर्व ही मेला संपन्न हो जाता है।ऐसे में मेले का अस्तित्व धीरे- धीरे समाप्त होने के कगार पर पहुँच गया है। स्थानीय स्तर पर मेला समिति का गठन कर मेले मे सुविधा एंव संसाधन उपलब्घ करा मेले की पहचान को कायम रखने की जरूरत पर बल दिया गया।

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