हरितालिका तीज और विनायक चतुर्थी व्रत को लेकर आज पढ़ें ज्योतिष अनुसंधान केंद्र वाराणसी से जुड़े डाॅ कृष्ण कुमार चतुर्वेदी ने दिए अहम जानकारी!!
रिपोर्ट: अम्बालिका न्यूज़, धर्म व अध्यात्म डेस्क:
छपरा/वाराणसी: हरितालिका तीज और विनायक चतुर्थी व्रत को लेकर ज्योतिष अनुसंधान केंद्र श्याम नगर, वाराणसी के सदस्य डाॅ कृष्ण कुमार चतुर्वेदी ने अहम जानकारी अम्बालिका न्यूज़ टीम को अहम जानकारी साझा किया है। जो पर्व-त्योहारों का अनुष्ठान करने वाले श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है। आईए एक नजर डालते हैं इस महत्वपूर्ण जानकारी पर:
हरितालिका तीज और विनायक चतुर्थी व्रत:
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हरितालिका (तीज)-
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व्रत देवता/उपदेवता – गौरी/शंकर
तिथि – भाद्र शुक्ल तृतीया।
निर्णय- हरितालिका व्रत चतुर्थी युक्त तृतीया में करने का विधान है। उस दिन हस्त नक्षत्र का संयोग उत्तम माना जाता है। द्वितीया पितामह की तिथि है और चतुर्थी पुत्र की तिथि है। इनके मध्य ही पति का स्थान है। अत: द्वितीया युक्त तृतीया का निषेध है और चतुर्थी युक्त तृतीया में व्रत, करना श्रेष्ठ है। इसलिए सूर्योदय के पश्चात जिस दिन मुहूर्त मात्र भी तृतीया हो तो उसी दिन व्रत करना चाहिए।
रंभाख्यां वर्जयित्वा तु तृतीयां द्विजसत्तम। अन्येषु सर्वकार्येषु गणयुक्ता प्रशस्यते।
( ब्रह्मवैवर्त पुराण)
यहां गणयुक्ता( गण= गणेश )का तात्पर्य चतुर्थी युक्त तृतीया से है। आपस्तम्ब का भी कथन हैं कि चतुर्थी सहित तृतीया ही फलप्रद होती है, वहीं स्त्रियों के लिए अवैधव्यकारी तथा पुत्र सौभाग्यदायिनी होती है। स्कन्द-पुराण और कालमाधव कार ने भी चतुर्थी युक्त तृतीया को ही ग्राह्य माना है। वृद्ध वशिष्ठ तो यहां तक कहते हैं कि एकादशी, तृतीया, षष्ठी और त्रयोदशी पूर्वविद्धा तभी ली जा सकती है जब दूसरे दिन न हो। केवल रंभा तृतीया व्रत में द्वितीया युक्त तृतीया लेने का विधान है , शेष गौरी व्रतों में चतुर्थी युक्त तृतीया ही लेनी चाहिए।
तीज सौभाग्यवती स्त्रियों और क्वांरी कन्याओं का व्रत है जो पति या भावी पति के दीर्घायु हेतु अहोरात्र ( एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय पर्यन्त) किया जाता है। इस व्रत को स्वयं उमा ने महेश्वर को प्राप्त करने के लिए किया था।
निष्कर्ष-
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हरितालिका (तीज) का व्रत शास्त्रानुसार सोमवार, दिनांक 18/09/2023 ई० को ही करना फलदाई है।
– विनायक चतुर्थी –
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यह व्रत भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन मध्यान्ह ( दिनमान के पांच भागों में से तीसरा भाग) में ही करना चाहिए। इसका मुख्य कारण है कि विनायकजी का जन्म मध्यान्ह काल में ही हुआ। था। कुछ अपवादों को छोड़कर यह ध्रुव सत्य है कि प्रायः अवतारों का अवतरण मध्यान्ह या प्रदोष काल में ही हुआ है। ये दोनों बेलाएं अति शुभ हैं। एक में अभिजित मुहूर्त होता है तो दूसरे में गोधूलि लग्न पाया जाता है। जन्मतिथि और मृत्युतिथि में उदयातिथि का कोई विधान नहीं है।
निष्कर्ष –
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सोमवार दिनांक 18/09/2023 ई० को मध्याह्न काल में ही चतुर्थी मिल रही है जबकि मंगलवार, दिनांक 19/09/2023 ई० को मध्याह्न काल में चतुर्थी नहीं है। इसलिए विनायक चतुर्थी का पूजन शास्त्रानुसार सोमवार दिनांक 18/09/2023 को ही मनाया जाना उचित है।
विशेष –
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व्रत-पर्वोत्सव का निर्णय शास्त्रानुकूल होना चाहिए। सुविधा अनुसार और शास्त्रविरुद्ध व्रत- पर्व हमारी उर्ध्वगति में कदापि सहायक नहीं हो सकते बल्कि अधोगति ही देंगे। इससे विद्वत् समुदाय का कर्तव्य बनता है कि शास्त्रविहित मार्ग पर स्वयं चलें और उसे भी चलाएं।
नोट: ज्योतिषाचार्य, डाॅ कृष्ण कुमार चतुर्वेदी के यह अपने विचार हैं। डॉ चतुर्वेदी बिहार के सारण जिले के एकमा प्रखंड के गौसपुर स्थित अपग्रेडेड प्लस टू स्कूल में संस्कृत विषय के शिक्षक भी हैं।