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धन संपदा उसी घर में रहती है, जहां ज्ञान, भक्ति व सत्कर्म का वास होता है: श्रीकृष्ण दास

धन संपदा उसी घर में रहती है, जहां ज्ञान, भक्ति व सत्कर्म का वास होता है: श्रीकृष्ण दास

मांझी (सारण)। धन की तीन गति होती हैं। दान भोग और नाश। इन तीनों में दान सर्वोत्तम है। यह बातें मांझी प्रखंड के चंदउपुर में चल रहे श्रीमद्भगवत कथा ज्ञान यज्ञ में वृंदावन से पधारे संत श्रीकृष्ण दास ने चौथे दिन की कथा के दौरान कहीं। उन्होंने श्रीमद्भगवत में वर्णित असुर राज बलि की कथा विस्तार पूर्वक कहीं। उन्होंने कहा कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी दिव्य दृष्टि से परख कर महाराज बलि को आगाह कर दिया था कि ब्राह्मण रूप में भिक्षाटन करने पधारे बामन रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं। वे आपसे छलपूर्वक तीनों लोकों का राज मांगने आये हैं। इतना सुनते ही राजा बलि ने कहा कि यह तो और भी अच्छी बात है कि भगवान चल कर मेरे यहां भिक्षाटन हेतु पधारे हैं। अतः मैं उन्हें खाली हाथ लौटा नही सकता। वह अपना सर्वस्व न्योछावर कर महादानी की संज्ञा से विभूषित होकर अमर हो गए। प्रवाचक ने कहा कि अपने दरवाजे से याचक को कभी भी खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। चूंकि लक्ष्मी रूपी धन संपदा उसी घर में रहती हैं, जहां ज्ञान भक्ति व सत्कर्म का वास होता है। पापकर्म से हासिल किया गया धन मानव के जीवन में दुख का कारण बनता है। संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में उपस्थित कलाकारों द्वारा प्रस्तुत राधेकृष्ण की आकर्षक झांकी के दौरान सैकड़ों स्रोता झूम रहे थे। कथा का संचालन प्रो वरूण कुमार सिंह ने किया। वहीं कार्यक्रम के पूर्व पत्रकार क्रमशः मनोज सिंह, के. के. सिंह सेंगर, अमित कुमार सिंह, वीरेश सिंह, संजय कुमार पाण्डेय, संजीव शर्मा समेत गोबरही पंचायत के सरपंच भरत सिंह आदि को आयोजन समिति के सदस्य प्रो. वरुण कुमार सिंह ने प्रशस्ति पत्र व मेडल भेंटकर सम्मानित किया।
इस मौके पर बड़ी संख्या में आयोजन समिति के सदस्य व श्रद्धालु महिला-पुरुष मौजूद थे।

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